डॉक्टर सुस्मित कुमार, पीएचडी

आप "मेड इन इंडिया" वस्तु के बजाय एक "मेड इन चीन" वस्तु की खरीद करते हैं, तो अपने देश में न केवल एक कारखाने में एक रोजगार, बल्कि परोक्ष रूप से जुड़े कई रोजगारों (स्कूलों, अस्पतालों, ऑटो, इत्यादि मे) खो देते है । इसके बजाय आयात किये वस्तु की खरीदी पर चीन में इस तरह की नौकरियों को बनाते है।

The Hidden Cost of Imported Items and The Need to Redefine Modi Administration’s “Make in India” Policy - click here for its English version

 जब आप एक आयात किये वस्तु खरीद रहे हैं तब भारत मैं दो तरह के छुपे रोजगारों की हानि होती है ।

(१) पहला बड़ा छुपा हानि है कि अगर भारत के अंदर बनाया गया होता तो देश में ही एक कारखाने में एक नौकरी होती। जब आप आयात किये एक १०० रुपये का सामान खरीदते है तो हो सकता है की यह २०० रुपये के भारत में बने सामान के बराबर होता। यह इसलिए है क्योंकि एक "मेड इन इंडिया" सामान एक घरेलू कारखाना अपने कर्मचारियों और सामान के लिए सामग्री खरीदने के लिए स्थानीय कारोबार के लिए भुगतान करता है जो अन्य नौकरियों को उत्पन्न करता है। आजकल कर्मचारी अपने वेतन को अपने घर के लिए व्यवसायों से वस्तुओं और सेवाओं की खरीद मैं खर्च करता है जिसे और भी रोजगार उत्पन्न होते है। अतिरिक्त खर्च के बाद के दौर के कारण अप्रत्यक्ष और प्रेरित खर्च की एक श्रृंखला प्रतिक्रिया जारी होती है। अर्थशास्त्र में, इस श्रृंखला प्रतिक्रिया रोजगार को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

(i) प्रत्यक्ष रोजगार: विनिर्माण संयंत्र में रोजगार।

(ii) अप्रत्यक्ष रोजगार: आपूर्ति कर्ताओं और वितरकों में रोजगार में परिवर्तन।

(iii) प्रेरित रोजगार: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कर्मचारियों से उत्पन्न नौकरियां अधिक खर्च और खपत बढ़ती है। एक उदाहरण के लिए, कर्मचारियों के वेतन खर्च करने से ऑटो, आवास, स्कूल / कॉलेज और भोजन जैसे उद्योगों में अतरिक्त रोजगार के अवसर पैदा करता है, कर्मचारी एक घर किराये पर या ख़रीदे गा; इसी तरह वाहन ख़रीदेगा, उनके बच्चे स्कूल या कॉलेज, आदि जायेंगे. सरकार भी कर (आयकर और बिक्री कर) मिलेगा जो की सरकार स्थानीय और देश में बुनियादी ढांचे और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करेगी।

 एक अध्ययन के आधार पर, निचे के टेबल में कुच्छ देशो में प्रत्येक प्रत्यक्ष रोजगार के कारण सभी तरह के रोजगारों (प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और प्रेरित रोजगारों) की संख्या से पता चलता है। इंडोनेशिया में प्रति प्रत्यक्ष नौकरी के कारण नौकरियों की कुल संख्या 14.9 सबसे उच्च था।

 

(२) दूसरे प्रमुख छुपा हानि है कि जब आप एक आयात किया हुआ सामान खरीदते हैं तो यह भारत को अपनी मेहनत की कमाए हुए डॉलर से ख़रीदा गया है। जब आप दुकान में आयात किये सामान को खरीदते है तो आप दुकानदार को रुपया देते है, बदले में दुकानदार दिल्ली य मुंबई के व्होल सेलर को रुपया देकर उस सामान खरीदता है, लेकिन व्होल सेलर दुनिया के बाजार में उस सामान को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करके दुसरे देश से खरीदता है. व्होल सेलर डॉलर भारत के बैंकों से लेता है. भारतीय निर्यातकों या विदेशी निवेशकों द्वारा अर्जित डॉलर भारत के बैंक में रहता है। भारत के पास आयात के लिए भुगतान के लिए कुल डॉलर नहीं रहता है तो रिज़र्व बैंक को रुपया का अवमूल्यन करना होता है। भारत दुनिया के बाजार में अपने कुल तेल का ७० प्रति सत आयात करता है और दुनिया के बाज़ार में देश को डॉलर देकर खरीदता है. रुपया के अवमूल्यन के बाद। तेल की कीमत रुपया के मामले में बढ़ जाती है. जब भी इस तरह पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होती है, तो विपक्षी दल और आम लोग महंगाई के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं, जबकि यह अपने ही देशवासियों जो आयात किये हुए वस्तुओं की खरीद के कारण हैं। भारतीयों, जो सस्ते आयात किये वस्तुओं को खरीदते है, तो पता नहीं चलता है कि वे केवल कीमत की तुलना में काफी अधिक भुगतान वास्तव में कर रहे हैं।

 

इसलिए, अगर हम पूरी अर्थव्यवस्था ध्यान में लेकर सोचे तो एक ”मेड इन इंडिया” सामान की 200 रुपया कीमत भी 100 रुपया के “मेड इन चाइना” का आयात किया हुए सामान तुलना में सस्ता हो सकता है। इसलिए, मोदी सरकार ने अपने 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को उपर्युक्त तथ्यों पर विचार कर के नए सिरे से परिभाषित करना चाहिए. भारतीयों को "मेड इन इंडिया" वस्तुओं की खरीद ने के लाभों को एक बच्चे को भी स्कूल में पढ़ाने की जरूरत है। जल्द से जल्द सरकार को आयात किये सामानों को सब्सिडी प्रदान देकर देश में ही बनाने के लिए कानून बनाना चाहिए – इन सामानों को बनाने वाली कारखानों को आय कर की छूट देनी चाहिए. इन कारखानों में कम करने वालों का कुच्छ वेतन सरकार दे सकती है जिस तरह की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अनुसार सरकार पैसे मजदूरों को देती है। सरकार इस में बड़ी-बड़ी कंपनियों को कारखाने नहीं खोलने देना चाहिए क्यूं की वे लाभ को ज्यादा से ज्यादा करने में विश्वास करते है. इन कारखानों को बिना लाभ के सिद्धांतों पर काम करना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक रोजगार का सृजन हो सके हैं. स्थानीय स्तर पर इन उत्पादों का निर्माण करने के लिए केवल छोटे सहकारी समितियों की अनुमति मिलनी चाहिए।

 

 

 

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